वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक, किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। - आचार्य श्रीराम शर्मा

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सोमवार, 31 दिसंबर 2012
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
अलग्योझा

'अलग्योझा' प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है.
प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
ये पुस्तक हमें श्री अनुराग व्यास ने भेजी है .
फाइल का आकर: ४० Kb
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ईदगाह

'ईदगाह' प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है.
प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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दो बैलों की कथा

'दो बैलों की कथा' प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है.इसमें प्रेमचंद जी ने जानवरों के माध्यम से इंसान को मिल-जुल कर रहने, प्रेमभाव रखने और वफादारी और म्हणत से अपना काम करने की सीख दी है.
प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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जुलूस

'जुलूस' प्रेमचंद जी की एक प्रसिद्ध कहानी है.
प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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पंच, पंचायत और पंचायती राज
यह पुस्तक पंचायती राज व्यवस्था के बारे में जानकारी देती है.
पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम, तालुका, और जिला आते हैं । भारत मे प्रचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं ।
भारतीय संविधान के अनिच्छेद ४० में राज्यं को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया हैं । १९९३ मैं संविधान में ७३वां संविधान संशोधन अधिनियम एक्ट, १९९२ करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गयी हैं ।
- बलवंत राय मेहता समिती की सिफारिशें (1957)
- अशोक मेहता समिती की सिफारिशें (1977)
- डा. पी.वी.के. राव समिती (1985)
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1857 की झांकियां
'1857 की झांकियां' राजकुमार द्वारा लिखित एक नाटक है.
यह १८५७ की क्रांति पर आधारित है.सिपाही स्वतंत्रता संग्राम का प्रारम्भ मेरठ से 10 मई, 1857 ई. को हुआ, परन्तु इसके पूर्व ही बरहामपुर और बैरकपुर की छावनियों के सैनिकों में असन्तोष के लक्षण प्रकट हो चुके थे। 28 मार्च, 1857 ई. को मंगल पाण्डे नामक सैनिक ने दिन-दहाड़े एक अंग्रेज़ पदाधिकारी को मार डाला था, परन्तु यह विद्रोह दबा दिया गया। फिर भी विद्रोहाग्नि भीतर ही भीतर धधकती रही और ग्रीष्म ऋतु के मध्य में इसकी ज्वाला भड़क उठी।
इसके राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सैनिक कई कारण थे। लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा गोद प्रथा का अन्त तथा देशी राज्यों को कुशासन के बहाने हड़पने की नीति से भारतीय राज्यों के शासकों को अपना सिंहासन बचाने की चिन्ता पीड़ित करने लगी। दूसरी ओर गद्दी से हटाये गए शासक तथा उनके आश्रित बेकारी तथा अर्थाभाव से पीड़ित होकर अंग्रेज़ों से द्वेष करने लगे। ऐसे अपदस्थ शासकों में से पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोह को संगठित करने में प्रमुख एवं सक्रिय भाग लिया। झाँसी की रानी ने मृत्यु पर्यन्त अंग्रेज़ों से वीरता पूर्वक युद्ध किया।
फाइल का आकार: 2 Mb
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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
एक गधे की वापसी - हास्य-व्यंग्य ( कृशन चंदर)

कृष्ण चंदर भारत के जाने माने कहानीकार-उपन्यासकार थे. एक गधे की आत्मकथा नामक उनका व्यंग्यात्मक उपन्यास खासा चर्चित रहा था. एक गधे की वापसी में उनकी व्यंग शैली की झलक मिलती है।
कृष्ण चंदर को साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६९ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से थे ।
साइज़: 200 Kb
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स्वपनदर्शी इंजीनियर विश्वेश्रैया
15 सितम्बर को विश्वेश्रैया जी की याद में इंजीनियरस डे मनाया जाता है . उन्ही की याद में प्रस्तुत है ये पुस्तक - स्वपनदर्शी इंजीनियर विश्वेश्रैया ।
डा. विश्वेश्रैया का नाम विश्व में प्रसिद्ध है। डा. विश्वेश्रैया ने
अभियंत्रण विभाग को पहचान दी है। सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण की तकनीक में
उनके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता।
मैसूर राज्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया अपने समय के सबसे महान अभियंता थे जिन्होंने बांध और सिंचाई
व्यवस्था के लिए नए तरीकों का इजाद किया। विश्वेसरैया अपने समय के महान इंजीनियर थे।
उन्होंने आधुनिक भारत में सिंचाई की बेहतर व्यवस्था और नवीनतम तकनीक पर
आधारित नदी पर बांध बनाए तथा पनबिजली परियोजना शुरू करने की जमीन तैयार की।
वह आधुनिक भारत के पहले महान इंजीनियर थे।
विश्वेसरैया ने कावेरी नदी पर उस समय एशिया के सबसे बड़े जलाशय का निर्माण किया और बाढ़ बचाव प्रणाली विकसित कर हैदराबाद पर मंडराते बाढ़ के खौफ को खत्म किया। इससे उन्हें खूब शोहरत मिली। 1912 में मैसूर राज्य के राजा ने उन्हें अपना दीवान नियुक्त किया और 1918 तक इस पद पर रहते हुए उन्होंने सैकड़ों स्कूल, सिंचाई की बेहतर सुविधा और कई अस्पताल समेत अनेकों विकासन्नोमुखी कार्य किए।
विश्वेसरैया के उल्लेखनीय कार्यो को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1955 में सर्वाेच्च नागरिक अलंकरण 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। उनके नाम पर पूरे भारत खासकर कर्नाटक में कई शिक्षण संस्थान हैं तथा उनके जन्मदिन को इंजीनियर दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा इस उपलक्ष्य में कर्नाटक के कुछ हिस्सों में सार्वजनिक अवकाश रहता है।
विश्वेसरैया को 'सर एमवी' और 'आधुनिक मैसूर का पितामह' भी कहा जाता है। 15 सितंबर, 1861 को विश्वेश्रैया का जन्म कर्नाटक के कोलार जिले के चक्कबल्लारपुर तलुका के मुद्देनभल्ली गांव में पारंपरिक और सांस्कृतिक रूप से धनाढ़य परिवार में हुआ था। उनके पिता संस्कृत के विद्वान थे। प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वह बेंगलूर आए, लेकिन आर्थिक तंगी ने उन्हें कई तरह की विपरीत परिस्थतियों का सामना करने के लिए मजबूर किया।
1881 में बीए करने के बाद मैसूर सरकार के सहयोग से पुणे के एक इंजीनियरिंग कालेज में उन्होंने दाखिला लिया और प्रथम स्थान हासिल किया। नासिक में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्ति के साथ उनकी नौकरी की शुरुआत हुई।
विश्वेसरैया ने कावेरी नदी पर उस समय एशिया के सबसे बड़े जलाशय का निर्माण किया और बाढ़ बचाव प्रणाली विकसित कर हैदराबाद पर मंडराते बाढ़ के खौफ को खत्म किया। इससे उन्हें खूब शोहरत मिली। 1912 में मैसूर राज्य के राजा ने उन्हें अपना दीवान नियुक्त किया और 1918 तक इस पद पर रहते हुए उन्होंने सैकड़ों स्कूल, सिंचाई की बेहतर सुविधा और कई अस्पताल समेत अनेकों विकासन्नोमुखी कार्य किए।
विश्वेसरैया के उल्लेखनीय कार्यो को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1955 में सर्वाेच्च नागरिक अलंकरण 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। उनके नाम पर पूरे भारत खासकर कर्नाटक में कई शिक्षण संस्थान हैं तथा उनके जन्मदिन को इंजीनियर दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा इस उपलक्ष्य में कर्नाटक के कुछ हिस्सों में सार्वजनिक अवकाश रहता है।
विश्वेसरैया को 'सर एमवी' और 'आधुनिक मैसूर का पितामह' भी कहा जाता है। 15 सितंबर, 1861 को विश्वेश्रैया का जन्म कर्नाटक के कोलार जिले के चक्कबल्लारपुर तलुका के मुद्देनभल्ली गांव में पारंपरिक और सांस्कृतिक रूप से धनाढ़य परिवार में हुआ था। उनके पिता संस्कृत के विद्वान थे। प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वह बेंगलूर आए, लेकिन आर्थिक तंगी ने उन्हें कई तरह की विपरीत परिस्थतियों का सामना करने के लिए मजबूर किया।
1881 में बीए करने के बाद मैसूर सरकार के सहयोग से पुणे के एक इंजीनियरिंग कालेज में उन्होंने दाखिला लिया और प्रथम स्थान हासिल किया। नासिक में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्ति के साथ उनकी नौकरी की शुरुआत हुई।
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गुरुवार, 27 दिसंबर 2012
'क्षितिज की संतान' - उपन्यास

'क्षितिज की संतान' एक पौराणिक घटनाक्रम पर आधारित उपन्यास है । इसे राजश्री ने लिखा है।
क्षितिज की संतान के दो प्रमुख नायक है - वैदिक व् पौराणिक युगीन महा असुर वरुण एवं महा रूद्र शिव।
पाठकों की विशेष मांग पर उपन्यास के नए लिंक उपलब्ध करवा दिए गए है .
अवश्य पढ़ें।
पृष्ठ संख्या: 448
फाइल का आकार: 10 Mb
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गुरुवार, 20 दिसंबर 2012
8 सेर चावल - कहानी संग्रह
8 सेर चावल कहानी संग्रह में उप-राज्यपाल रह चुके के. संथानम की १२ तमिल कहानियों का हिंदी रूपांतरदिया गया है जो उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान जेल में रहते हुए लिखी थी। इन कहानियों का रचनाकाल १९४० के आसपास का है।
आशा है, आपको ये कहानियां पसंद आएगी।
पृष्ठ संख्या: १५०
साइज़: 8 MB
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5 कहानियां - सुमित्रानंदन पन्त (कहानी संग्रह)

सुमित्रानंदन पंत (२१ मई १९०० - २८ सितंबर १९७७) हिंदी में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं।
बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध छायावादी कवियों का उत्थान काल था। सुमित्रानंदन पंत उस नये युग के प्रवर्तक के रूप में हिन्दी साहित्य में उदित हुए। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे छायावादी प्रकृति उपासक-सौन्दर्य पूजक कवियों का युग कहा जाता है।
सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति चित्रण इन सबमें श्रेष्ठ था। उनका जन्म ही बर्फ़ से आच्छादित पर्वतों की अत्यंत आकर्षक घाटी अल्मोड़ा में हुआ था, जिसका प्राकृतिक सौन्दर्य उनकी आत्मा में आत्मसात हो चुका था। झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भंवरा गुंजन, उषा किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था, गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, उंची नाजुक कवि का प्रतीक समा शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था।
कवि के रूप में तो आप श्री सुमित्रानंदन पन्त से परिचित है ही, अब आप उनकी लिखी हुई ये दुर्लभ कहानियां भी पढ़कर देखिये। आशा है, आपको ये कहानियां पसंद आएगी।
आकार : ६ MB
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