'अक्षर-अक्षर' पुस्तक में पंजाबी के जनकवि अवतार सिंह 'पाश ' की सभी काव्य रचनाओं का संग्रह है.
जिंदगी भर इन्सानियत के कातिलो के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वाले पंजाबी के जनकवि अवतार सिंह 'पाश ' को ३७ साल की उम्र में ही २३ मार्च १९८८ को धर्मांध दहशतों गर्दों ने गोलियां बरसाकर मार दिया था | शहीदे-आज़म भगत सिंह ने २३ मार्च १९३१ को फांसी चढ़कर इन्कलाब की जिस लौ को जलाया जनकवि अवतार सिंह 'पाश' उसे मशाल बनाकर जिये |
उनका जन्म ९ सितम्बर १९५० को ग्राम तलवंडी सलेम जिला जालंधर (पंजाब) में हुआ था | उन्होंने पहली कविता १५ वर्ष की आयु में लिखी | वे १९६७ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और १९६९ में नक्सलवादी आन्दोलन से जुड़े | १९८५ में वे अमेरिका चले गए वहाँ एंटी -४७(१९८६-८८) का संपादन करते हुए खालिस्तानी आन्दोलन के विरुद्ध सशक्त प्रचार किया |
अवतार
सिंह 'पाश' द्वारा लिखित कुल १२५ कविताये उपलब्ध है | जो उनके चार कविता
संग्रहों लौहकथा (१९७०), उडडदे बजान मगर (१९७४), साडे समियां विच (१९७८),
लडांगे साथी(१९८८) में संगृहीत हैं |
पंजाबी भाषा के कवि 'पाश' को उनकी म्रत्यु के बाद अन्य भाषा
भाषियों ने भी बखूबी पहचाना| 'पाश' की कविता की धार निराला, नागार्जुन और
गोरख पाण्डेय की याद ताज़ा कर देती है | 'पाश' एक ऐसा जन कवि था जिसने केवल
शब्दों का बडबोलापन ही नहीं दिखाया बल्कि व्यवस्था के खिलाफ लगातार लड़ाई
भी लड़ी | वे कई बार जेल गए और पुलिस की यातना सही | उनका कहना था -
हम झूठ मूठ का कुछ भी नहीं चाहते
और हम सब कुछ सचमुच देखना चाहते है
जिन्दगी, समाजवाद या कुछ ओर |
जनकवि 'पाश' के लिए देशभक्ति अपने देश की जनता कि मोहब्बत में, उसके दुःखदर्द में बसती है |तभी तो वे कहते हैं -
मुझे देश द्रोही भी कहा जा सकता है
लेकिन मैं सच कहता हूँ यह देश अभी मेरा नहीं है
यहाँ के जवानों या किसानों का नहीं है
यह तो केवल कुछ 'आदमियों' का है
ओर हम अभी आदमी नहीं हैं ,बड़े निरीह पशु हैं |
हमारे जिस्म में जोंकों ने नहीं पालतू मगरमच्छों ने दांत गड़ाएं हैं
उठो,
उठो काम करने वाले मजदूरों उठो |
खेमो पर लाल झंडे लगाकर बैठने से कुछ न होगा
इन्हें अपने रक्त की रंगत दो |
आगे वे कहते हैं -
अगर देश कि सुरक्षा ऐसी होती किहर हड़ताल को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगाकि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगीकला का फूल बस राजा कि खिड़की में ही खिलेगाअक्ल, हुकुम के कुँए पर रहट कि तरह ही धरतीसींचेगी,मेहनत राज महलों के दर पर बुहारी ही बनेगीतो हमें देश कि सुरक्षा से खतरा है |
बगावत की ऐसी आवाज शायद ही किसी कवि ने बुलंद की हो | 'पाश' के तेवर तानाशाही निजाम के साथ-साथ धर्मांध दहशतगर्दों के खिलाफ भी उसी हौसलें से लोहा लेते रहे | उन्होंने धर्मगुरुओं को चुनौती देते हुए कहा -
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2 टिप्पणियां:
Very Nice!
मेरे आलेख को शामिल करने के लिये शुक्रिया |
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