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वीसल देव रासो |
बीसलदेव रासो पुरानी पश्चमी राजस्थानी की एक सुप्रसिद्ध रचना है। इसके रचनाकार नरपति नाल्ह हैं। इस रचना में उन्होंने कहीं पर स्वयं को "नरपति" कहा है और कहीं पर "नाल्ह"। सम्भव है कि नरपति उनकी उपाधि रही हो और "नाल्ह" उनका नाम हो ।
वीसलदेव पश्चिमी राजस्थान के राजा थे। वीसलदेव रासो की रचना तिथि सं. 1400 वि. के आसपास की है। यह रचना वीर गीतों के रुप में उपलब्ध है। इसमें वीसलदेव के जीवन के 12 वर्षों के कालखण्ड का वर्णन किया गया है। वीरगीत के रूप में सबसे पुरानी पुस्तक 'बीसलदेव रासो' मिलती है।
श्री रामचन्द्र शुक्ल ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है - 'बीसलदेव रासो नरपति नाल्ह कवि विग्रहराज चतुर्थ उपनाम बीसलदेव का समकालीन था। कदाचित् यह राजकवि था। इसने 'बीसलदेवरासो' नामक एक छोटा-सा (100 पृष्ठों का) ग्रंथ लिखा है जो वीरगीत के रूप में है। ग्रंथ में निर्माणकाल यों दिया है -
बारह सै बहोत्तराँ मझारि। जेठबदी नवमी बुधावारि।
'नाल्ह' रसायण आरंभइ। शारदा तुठी ब्रह्मकुमारि
'बारह सै बहोत्तराँ' का स्पष्ट अर्थ 1212 है। 'बहोत्तर शब्द,
'बरहोत्तर', 'द्वादशोत्तर' का रूपांतर है। अत: 'बारह सै बहोत्तराँ' का अर्थ
'द्वादशोत्तर बारह सै' अर्थात 1212 होगा। गणना करने पर विक्रम संवत 1212
में ज्येष्ठ बदी नवमी
को बुधवार ही पड़ता है। कवि ने अपने रासो में सर्वत्र वर्तमान काल का ही
प्रयोग किया है जिससे वह बीसलदेव का समकालीन जान पड़ता है। विग्रहराज
चतुर्थ (बीसलदेव) का समय भी 1220 के आसपास है। उसके शिलालेख भी संवत 1210
और 1220 के प्राप्त हैं। बीसलदेव रासो में चार खंड है। यह काव्य लगभग 2000 चरणों में समाप्त हुआ है। इसकी कथा का सार यों है -
'नाल्ह' रसायण आरंभइ। शारदा तुठी ब्रह्मकुमारि
- खंड 1 - मालवा के भोज परमार की पुत्री राजमती से साँभर के बीसलदेव का विवाह होना।
- खंड 2 - बीसलदेव का राजमती से रूठकर उड़ीसा की ओर प्रस्थान करना तथा वहाँ एक वर्ष रहना।
- खंड 3 - राजमती का विरह वर्णन तथा बीसलदेव का उड़ीसा से लौटना।
- खंड 4 - भोज का अपनी पुत्री को अपने घर लिवा ले जाना तथा बीसलदेव का वहाँ जाकर राजमती को फिर चित्तौड़ लाना।
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3 टिप्पणियां:
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