
भगवान् श्रीशंकराचार्य के ग्रन्थों में ‘विवेक-चूड़ामणि’ एक प्रधान ग्रन्थ हैं। यह मुमुक्षु पुरुषों के लिये बड़ा ही उपयोगी है। यह ओशो की प्रिय पुस्तकों में से एक है।
जगतगुरू शंकराचार्य प्रणीत विवेक चूड़ामणि के अंतर्गत गुरू-शिष्य संवाद के द्वारा यह दिखाया गया है कि एक गुरू कौन हो सकता है, उसकी कितनी महत्ता हो सकती है और वह किस गहराई तक एक व्यक्तित्व का पथ प्रदर्शक बन सकता है जो कि भविष्य में देश का कर्णधार होगा। एक ऎसा शिष्य गुरू के पास जाता है जो आशाविहीन है तो वह गुरू के संपर्क में रहकर आत्मज्ञान प्राप्त कर अपनी आशा पूर्ण करता है।
पुस्तक संस्कृत में है और साथ में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। हिंदी अनुवाद की पुस्तक हमने बहुत खोजी पर हमें मिल ना सकी । अगर आपके पास हो तो भेजने का कष्ट करें।
यह पुस्तक हमें श्री अनिल चौहान ने बीकानेर से भेजी है।
अवश्य पढ़ें।
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2 टिप्पणियां:
आभार।
Atyant sangrahniya dharohar.......
A very thanks to provide me this book.........
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