
प्रस्तुत पुस्तक में श्री किशोरीलाल गोस्वामी ने संध्या पूजा करने की विधि और मंत्र बताये है।
मनुष्य द्वारा की गई प्रात:काल, मध्यान्ह काल तथा सायंकाल की पूजा को संध्या कहा जाता है। दिन और रात्रि की सन्घि वेला में पूजा की जाने से इस धार्मिक क्रिया को संध्या कहा है। क्योंकि इसी समय हम ईश्वर के सबसे अधिक निकट होते है . मध्यान्ह को भी सन्घि माना जाता है।
इन तीनों संध्याओं में जो उपासना की जाती है उसे त्रिकाल संध्या कहते हैं। याज्ञवल्क्य ने संध्या का लक्षण बताया है इसमें ऋ क, साम, यजु तीनों वेदों और ब्रह्मा, विष्णु, शिव तीन मूर्तियों का समागम होता है। सभी देवताओं की इसमें सन्घि होती है इसलिए संध्या नाम से प्रसिद्ध है।
वेद व्यास ने तीनों काल की संध्याओं के नाम बताए हैं- पूर्वाह्न में गायत्री, मध्यान्ह में सावित्री तथा सायंकाल में सरस्वती। तैत्तिरीय ब्राह्मण में कहा है कि उगते, अस्त होते तथा मध्यान्ह में ऊपर जाते आदित्य यानी सूर्य का ध्यान करते हुए विद्वान मनुष्य सम्पूर्ण कल्याण को प्राप्त होता है।
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6 टिप्पणियां:
उपयोगी प्रस्तुति।
Dear Sir,
Sandhya Proyog downlod link not working i had been try all links. plz help
having the same problem as K Sharma
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