
'सहजो बाई की बानी ' में परम संत सहजो बाई की बनिया दी गयी है।
चरन दास की दो शिष्यायें थी। एक थी सहजो बाई और दुसरी थी दया बाई। ये चरन दास की दो आंखें है। जैसे किसी पाखी के दो पंख हो। इन दोनों ने चरण दास के गीत गाए है। तब लोगो को चरन दास की खबर लगी।
इन दोनों के स्वर इतने एक है कह आप दोनों में भेद नहीं कर पाओगे। एक होंगे ही क्योंकि एक ही गुरु ने दोनों को बचाया है। एक ही गुरु की छाया दोनों पर पड़ी ही। एक ही गुरु का ह्रदय दोनों में धड़क रहा है। एक ही प्रेम की रस धारा दोनों में प्रवाहित हो रही है। उसी उर्जा ने जीवन नये आयाम दिये उस बगिया को महकाया है। फूल खिला ये हे। भँवरों न गुंजान की है, रौनक दी ही।
सहजो का एक-एक पद अनूठा है। शब्दों के बीच में खाली जगह को पढ़ना पड़ेगा। पंक्तियों के बीच में रिक्त स्थान को पढ़ना पड़ेगा। वो जो खाली जगह है वह पर्याप्त प्रणाम है। बुद्धत्व के वचनों का। लेकिन सहजो के वचनों में खाली जगह का तुम नहीं पढ़ सकोगे। उस के लिए तुम्हें अपने अन्दर की खाली जगह को पढ़ना आना चाहिए। जिस दिन कोई अपने भीतर की खाली जगह को पढ़ लेता है उसी दिन वह बहार के शब्दों की खाली जगह को पढ़ सकता है लिख सकता है।
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2 टिप्पणियां:
पहली बार जाना, आभार।
sahjo bai to jisko pata chala sab ki priya hain. jo unko khoj paya pram paga ho gaya. Guru shisya ka prem aur samarpan adbhut hai.
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