
'बसंत-बहार' पुस्तक किशोरी लाल गोस्वामी जी की रचना है। इसमें उन्होंने बसंत ऋतू के गीतों का वर्णन किया है।
कालक्रम की दृष्टि से श्रीनिवासदास के पश्चात् हिन्दी उपन्यास क्षेत्र में किशोरीलाल गोस्वामी का स्थान है। श्रीनिवासदास ने नई चाल की पुस्तक लिखकर जिस विधा का श्रीगणेश किया था; किशोरीलाल गोस्वामी ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति उसी पर केन्द्रित कर दी थी। अपने उपन्यासों की भूमिकाओं में उन्होंने अपनी कुछ मान्यताओं को प्रकट किया है।
अपने समकालीन उपन्यासकारों की अपेक्षा, किशोरीलाल गोस्वामी के उपन्यासों में सामाजिक तत्त्व का आधिक्य है। वे तिलस्मी-ऐयारी, जासूसी-डकैती उपन्यासों से सम्बद्ध नहीं है; किन्तु घटना वैचित्र्य द्वारा रस-उत्पादन-हेतु उन्होंने भी सामाजिक जीवन का वही पक्ष ग्रहण किया है, जो कथा रस से पाठक के हृदय को जासूसी ऐयारी उपन्यासों के ही समान सम्मोहित करे। अतः यह आवश्यक था कि समाज के उस भ्रष्ट वर्ग का चित्रण किया जाता, जिसमें तथाकथित रस से पूर्ण घटना वैचित्र्य का बाहुल्य था।
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1 टिप्पणियां:
बसंत के गीत एक नया उत्साह संचारित करते हैं, आभार।
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