
प्रस्तुत पुस्तक 'अरबों के देश में' श्री गोपाल व्यास द्वारा लिखित है। इसमें उन्होंने अपनी अरब देशों की यात्रा का रोचक वर्णन किया है। लेखक की भाषा चुटीली है जो पाठक के मन को गुदगुदाती है।
पंडित गोपालप्रसाद व्यास हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे।
हिन्दी में व्यंग्य-विनोद की नई धारा के जनक। हास्यरस में पत्नीवाद के प्रवर्तक।
जन्मः सूरदास की निर्वाणस्थली परासौली (गांव- महमदपुर, गोवर्धन कस्बे के निकट, जिला-मथुरा, उत्तर प्रदेश) जन्मपत्री के अनुसार माघ शुक्ल 10, संवत् 1972 विक्रमी और स्कूली सर्टिफिकेट के अनुसार 13 फरवरी, 1915 ई.।
शिक्षाः प्रारंभिक शिक्षा पहले परासौली के निकट भवनपुरा में। उसके बाद अथ से इति तक मथुरा में केवल कक्षा सात तक। स्वतंत्रता-संग्राम के कारण उसकी भी परीक्षा नहीं दे सके और स्कूली शिक्षा समाप्त हो गई। पिंगल पढ़ा स्व0 नवनीत चतुर्वेदी से। अंलकार, रस-सिद्धांत पढ़े सेठ कन्हैयालाल पोद्दार से। नायिका भेद का ज्ञान सैंया चाचा से और पुरातत्व, मूर्तिकला, चित्रकला आदि का डॉ0 वासुदेवशरण अग्रवाल से। विशारद और साहित्यरत्न का अध्ययन तथा हिन्दी के नवोन्मेष का पाठ पढ़ा डॉ0 सत्येन्द्र से।
विशेषः ब्रजभाषा के कवि, समीक्षक, व्याकरण, साहित्य-शास्त्र, रस-रीति, अलंकार, नायिका-भेद और पिंगल के मर्मज्ञ। हिन्दी में व्यंग्य-विनोद की नई धारा के जनक। हास्यरस में पत्नीवाद के प्रवर्तक। सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक व्यंग्य-विनोद के प्रतिष्ठाप्राप्त कवि एवं लेखक और 'हास्यरसावतार' के नाम से प्रसिद्ध।
पत्रकारिता के क्षेत्र में: 'साहित्य संदेश' आगरा, 'दैनिक हिन्दुस्तान' दिल्ली, 'राजस्थान पत्रिका' जयपुर, 'सन्मार्ग', कलकत्ता में संपादन तथा दैनिक 'विकासशील भारत' आगरा के प्रधान संपादक। स्तंभ लेखन में सन् 1937 से अंतिम समय तक निरंतर संलग्न। ब्रज साहित्य मंडल, मथुरा के संस्थापक और मंत्री से लेकर अध्यक्ष तक। दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक और 35 वर्षों तक महामंत्री और अंत तक संरक्षक। श्री पुरुषोत्तम हिन्दी भवन न्यास समिति के संस्थापक महामंत्री के पद पर अंत तक रहे। लाल किले के 'राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन' और देशभर में होली के अवसर पर 'मूर्ख महासम्मेलनों' के जन्मदाता और संचालक।
देहावसान: शनिवार, 28 मई, 2005, प्रातः 6 बजेफाइल का आकार: १२ मब
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3 टिप्पणियां:
आभार।
बहुत अच्छा व्यंग है.
देश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?
मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
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