वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक, किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। - आचार्य श्रीराम शर्मा
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रजनीशचन्द्र मोहन(११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०) ओशो के नाम से प्रख्यात हैं जो अपने विवादास्पद नये धार्मिक (आध्यात्मिक) आन्दोलन के लिये मशहूर हुए और भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे। रजनीश ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की तथा प्यार, ध्यान और खुशी को जीवन के प्रमुख मूल्य माना।
ओशो
ने सैकडों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिये। उनके प्रवचन पुस्तकों,
आडियो कैसेट तथा विडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। अपने क्रान्तिकारी
विचारों से उन्होने लाखों अनुयायी और शिष्य बनाये। अत्यधिक कुशल वक्ता होते हुए इनके प्रवचनों की करीब ६०० पुस्तकें हैं। संभोग से समाधि की ओर इनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है। इनके नाम से कई आश्रम चल रहे है।
यहपुस्तकहमेंश्री मोहन प्रकाश ने पुणे से भेजीहैजिसकेलिएहमउनकेआभारीहै। फाइल का आकार:३०० Kb डाउनलोड लिंक(Megaupload) : कृपया यहाँ क्लिक करें
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Author: Admin
| Posted at: 3:10 pm |
Filed Under: साहित्य समाचार
|
(हरीश करमचंदानी)
सहज और ईमानदार अभिव्यक्ति ही बड़ी कविता है : विष्णु नागर
हरीश करमचंदाणी के काव्य संग्रह‘समय कैसा भी हो’का लोकार्पण
जयपुर 11 दिसंबर। वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार विष्णु नागर का कहना है कि आज के समय के सच को सहज रूप से और बेहद ईमानदारी के साथ व्यक्त करने वाली कविता ही बड़ी कविता है। वे आज जवाहर कला केंद्र और हिंदी प्रचार प्रसार संस्थान द्वारा सुपरिचित कवि हरीश करमचंदाणी के काव्य संग्रह‘समय कैसा भी हो’पर आयोजितलोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जैसी वैश्विक परिस्थितियां बन रही हैं, उनमें साहित्य ही मनुष्य को बचाने का काम कर सकता है। इस अवसर पर अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि विजेंद्र ने कहा कि मानवीय श्रम और जिजीविषा को व्यक्त करने वाले कवि ही काल का अतिक्रमण करते हैं। कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो. मोहन श्रोत्रिय, कवि नंद भारद्वाज और समालोचक राजाराम भादू ने काव्य संग्रह के विविध आयामों पर चर्चा की। कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों ने आरंभ में काव्य संग्रह का लोकार्पण किया और हरीश करमाचंदाणी ने कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन प्रेमचंद गांधी ने किया।
Author: Admin
| Posted at: 3:07 pm |
Filed Under: साहित्य समाचार
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पर्वत राग का लीलाधर जगूड़ी विशेषांककला, संस्कृति व साहित्य को समर्पित पत्रिकापर्वत राग का बहुप्रतीक्षित लीलाधर जगूड़ी विशेषांकप्रकाशित हो गया है। इस अंक में लीलाधर जगूड़ी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर उनके समकालीन लेखकों व अन्य शब्द- शिल्पियों ने बहुमूल्य सामग्री दी है। साथ ही लीलाधर जगूड़ी से विभिन्न लेखकों द्वारा लिए गए बेबाक साक्षात्कार भी हैं । इस अंक मेंलीलाधर जगूड़ी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर जिन प्रमुख लेखकों की रचनाएं पर्वत राग में शामिल हैं, उनमेंकुंवर नारायण, मुद्रा राक्षस, गिरधर राठी, मंगलेश डबराल,राजेश जोशी, अरुण कमल, विजय कुमार, विष्णु नागर, नरेन्द्र मोहन सत्यपाल सहगल, मदन कश्यप, ओम निश्चल, अनूप सेठी, रेवती रमण ,अग्निशेखर, अवधेश प्रीत, शिरीष कुमार मौर्य, मधुकर भारती, महेश चंद्र पुनेठा, नवनीत शर्मा, प्रेम साहिल, अमित तरव, सुरेश उनियाल, नवीन चंद्र लोहनी, सुधीर महाजन, ओम नागर, शशिभूषण बडोनी, विपिन कुमार शर्मा ,मोनू सिंह व नीलम प्रभा वर्माशामिल हैं। इसके अलावा इस अंक मेंगीताश्री, भरत प्रसाद, लाल्टू,कुलदीप शर्मा, के.आर.भारती, प्रतिभा कटियार, लीना मल्होत्रा, भूपिन्द्र कौर प्रीत, शरवाणी बैनर्जी व गुरमीत बेदी की कविताएं, संतोष शैलजा की लघु उपन्यासिका, डा. तारिक कमर, गौतम राजरिशी व अखिलेश तिवारी की गजलें हैं। पर्वत राग के इस विशेषांक का मूल्य नब्बे रूपए है। पंजीकृत डाक से मंगवाने के लिए 36 रूपए अलग से जोड़ने होंगे। रचनाकारों के अलावा पर्वत राग के आजीवन व वार्षिक सदस्यों को अंक की मुद्रित प्रति डाक से भेजी जा रही है। आपकी बहुमूल्य राय का इंतजार रहेगा। इंटरनेट पर पर्वत राग का लीलाधर जगूड़ी विशेषांक पढ़ने के लिए www.parvatraag.comपर क्लिक करें- संपादक,पर्वत राग,सैट नंबर- 8, टाईप- 4, डीसी कालोनी, ऊना- 174303 हिमाचल प्रदेश
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Author: Admin
| Posted at: 9:14 am |
Filed Under: साहित्य समाचार
|
संबोधन का विशेषांक लोकार्पित
उदयपुर. आचार्य निरंजननाथ स्मृति सेवा संस्थान और साहित्य त्रैमासिकी 'संबोधन' के संयुक्त तत्वावधान में इस साल का आचार्य निरंजननाथ सम्मान सुपरिचित कवि गोविन्द माथुर को उनकी काव्य कृति 'बची हुई हंसी' के लिए प्रदान किया गया. सम्मान में इकतीस हज़ार रुपये,श्रीफल, स्मृति चिन्ह तथा प्रशस्ति पत्र कवि को भेंट किये गए.
इस साल से नवोदित रचनाकारों के लिए भी एक और सम्मान दिया गया जिसके लिए नीलिमा टिक्कू की कृति 'रिश्तों की बगिया' को चुना गया था.उन्हें भी प्रशस्ति पत्र, श्रीफल, स्मृति चिन्ह और ग्यारह हज़ार रुपये अर्पित किये गए.
समारोह के मुख्य अथिति और वरिष्ठ कवि नन्द चतुर्वेदी ने कहा कि आज देश में लोग स्वार्थों के कारण हिंसा पर उतारू हैं,जिससे रिश्ते ही ख़त्म होने की कगार पर हैं. पहले जहां जीवन कविता की तलाश करता था वहीं आज समय ने ऐसी करवट ली है कि कविता को जीवन की तलाश करनी पड़ रही है . उन्होंने पुरस्कारों की राजनीति और अविश्वसनीयता के बीच आचार्य निरंजननाथ सम्मान को महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह लघु प्रयासों से रचनाशीलता का हार्दिक सम्मान है. अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कथाकार और 'अक्सर' के सम्पादक हेतु भारद्वाज ने इस कठिन और लालची समय में विचार की जरूरत पर बल देते हुए साहित्य की अर्थवत्ता बताई. विशिष्ट अतिथि उपन्यासकार राजेन्द्रमोहन भटनागर ने राजनेताओं के आचरण पर व्यंग्य करते हुए कहा कि हम जानते हैं सत्यनिष्ठा की शपथ लेने पर भी नेता कितना सत्य बोलते हैं. इससे पहले सम्मान के संयोजक और 'संबोधन' के सम्पादक क़मर मेवाड़ी ने बताया कि माथुर से पूर्व देश भर के बारह रचनाकारों को यह सम्मान दिया जा चुका है. आयोजन समिति के अध्यक्ष कर्नल देशबंधु आचार्य ने अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मान की रूपरेखा स्पष्ट की. समारोह में संबोधन के आचार्य निरंजननाथ विशेषांक का भी लोकार्पण किया गया.
ज्ञातव्य है कि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रहे कवि, लेखक और यात्रा संस्मरणकार आचार्य निरंजननाथ का यह जन्मशताब्दी वर्ष भी है.
जगह-
मुंबई सीएसटी स्टेशन। समय- 4.52 मिनट....ठीक वही, जब तीन बरस पहले कसाब ने
यहां लाशों के ढेर लगा दिए थे। रविवार का नजारा- रंग दे बंसती गाने पर
थिरकते सैकड़ों युवा। उद्देश्य- अनोखे फ्लैश मॉब डांस के माध्यम से
मुंबई हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि।और उन आतंकियों को चेतावनी जो
अपने खतरनाक मंसूबों से आम लोगों के हौसले को खत्म करने की नापाक कोशिश
में जुटे हैं।आइडिया- युवा छात्रा शोनेन कोठारी का, जिसने अपने 12
दोस्तों को मॉब डांस के लिए तैयार करके इसकी शुरूआत की। बाद में लोग जुड़ते
गए। और रविवार की शाम सैकड़ों लोगों ने स्वतःस्फूर्त तरीके से आयोजन में
शिरकत कर जता दिया कि मुंबईकर का जज्बा कोई भी ऐरा-गैरा यूं ही नहीं तोड़
सकता है।
सीएसटी पर रंग दे बंसती गीत पर झूमते लोगों को देखकर ऐसा लग
रहा था मानो मुंबई मनोरंजन, और कला के दम पर आतंक को व्यंग्य में जवाब दे
रही हो। 4 से 60 साल के आयुवर्ग के लोग इस फ्लैश मॉब के माध्यम से 26 नवंबर
2008 के आतंकी हमले में मारे गए लोगों को अपनी तरफ से श्रदांजलि दी।
स्टेशन के एनाउंसमेंट सिस्टम से रंग दे बसंती का टाइटल ट्रैक बजा जिस पर इस
फ्लैश मॉब में लोगों ने भाग लिया।
इंटरनेट पर वायरल बन चुका है डांस का वीडियोदेश
के इस पहले फ्लैश मॉब डांस का वीडियो इंटरनेट में धूम मचा रहा है और इसे
अभी तक 5 लाख से अधिक हिट्स मिल चुके हैं। मुंबई का यह पहला फ्लैश मोब
इंटरनेट पर वायरल बन चुका है और यू ट्यूब, फेसबुक और ट्विटर पर इसकी खूब
चर्चा हो रही है। यू ट्यूब इस वीडियो को बहुत पंसद किया जा रहा है और 4 से
60 साल के आयुवर्ग को झूमते नाचते गाते देखकर जय हिन्द और वंदेमातरम़् के
फीडबैक पोस्ट किए जा रहे है। यू ट्यूब पर 5 लाख हिट्स और 11000 हजार 3 हजार से अधिक कमेंटशोनेन
कोठारी द्वारा यू ट्यूब पर अपलोड किए गए इस फ्लैश मॉब वीडियो को अभी तक 5
लाख से अधिक लोगों ने डाउनलोड किया है और 3 हजार से अधिक लोगों ने इस पर
अपनी प्रतिक्रिया दी है। 11 हजार से अधिक लोगों ने इसे अपनी पंसद के रूप
में चुना है। क्या है फ्लैश मॉब:यह ऐसे लोगों का समूह होता है
जो अचानक किसी स्थान पर आते है और मनोरंजन, कोई कलात्मक अभिव्यक्ति या फिर
व्यंग्य की भाषा में प्रदर्शन करते हैं। इस तरह का पहला समूह 2003 में
मैनहट्टन में दिखा था जिसको हॉर्पर पत्रिका के वरिष्ठ संपादक बिल वासिक ने
फ्लैश मॉब का नाम दिया था। इसके बाद संसार के कई देशों में इस तरह के आयोजन
हुए। कैसे हुई शुरुआत:इस इवेंट की सफलता का पूरा क्रेडिट 23
साल की शोनेन कोठारी को है जिन्होंने हॉर्वर्ड की पढ़ाई के दौरान इस तरह के
कला आंदोलन होते हुए देखा था। शोनेन भी ऐसा भारत में करना चाहती थी और
मुंबई में उन्होंने इसे कर दिखाया। शुरुआत में 20 दोस्तों के साथ अपने इस
आइडिए को बताया और इस मुहिम को आगे बढ़ाया। कारवां बढ़ा लोगों की संख्या
300 से ऊपर पहुंची। लोगों के ट्रेंड करने के लिए कोरियोग्राफर भौमिक शाह की
मदद शोनेन ने ली। पूरे कार्यक्रम की वीडियो फिल्मांकन से लेकर , अभ्यास के
लिए जगह की तलाश और सभी तरह के खर्चे शोनेन कोठारी ने अपनी जेब से खर्च
किए। बड़ी मुश्किल से मनाया रेलवे कोसीएसटी पर फ्लैश मोब की
अनुमति शोनेन को बहुत मुश्किल से मिली। उनको पहले कोई खास उत्साहजनक जवाब
नहीं मिला था लेकिन जब उन्होंने अपने लेपटॉप से संसार में अन्य स्थानों पर
होने वाले आंदोलन के बारे में बताया तो अधिकारी इस शर्त पर तैयार हुए कि आप
यह पूरा आयोजन रंग दे बंसती गीत पर ही करेंगी। और उसके बाद जो हुआ उसने
अचानक शोनेन कोठारी को इंटरनेट जगत में चर्चा में ला दिया। वो कुछ असाधारण
काम करना चाहती थी और उन्होंने जो सोचा कर दिखाया। इस फ्लैश मॉब को देखकर
मनोज बदरा लिखते हैं शानदार.. क्या एनर्जी लेवल है..टू गुड..साधारण और
अद्भुत। विजेन्द्र अपना फीडबैक देते हुए लिखते है कमाल है यार, आश्चर्यचकित
कर दिया।
रजनीशचन्द्र मोहन(११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०) ओशो के नाम से प्रख्यात हैं जो अपने विवादास्पद नये धार्मिक (आध्यात्मिक) आन्दोलन के लिये मशहूर हुए और भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे। रजनीश ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की तथा प्यार, ध्यान और खुशी को जीवन के प्रमुख मूल्य माना।
ओशो
ने सैकडों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिये। उनके प्रवचन पुस्तकों,
आडियो कैसेट तथा विडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। अपने क्रान्तिकारी
विचारों से उन्होने लाखों अनुयायी और शिष्य बनाये। अत्यधिक कुशल वक्ता होते हुए इनके प्रवचनों की करीब ६०० पुस्तकें हैं। संभोग से समाधि की ओर इनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है। इनके नाम से कई आश्रम चल रहे है।
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'लॉटरी' प्रेमचंद की एक हास्य-व्यंग्य से भरपूर कहानी है.
प्रेमचंद
(३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय
श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं।
उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास
सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल
के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद
ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी
शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक
प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं
शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं
थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद
के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों
के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और
परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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प्रेमचंद
(३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय
श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं।
उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास
सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल
के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद
ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी
शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक
प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं
शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं
थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद
के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों
के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और
परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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'प्रेमा' प्रेमचंद का पहला उपन्यास था जो १९०७ में हिन्दी में प्रकाशित हुआ था। इसके उर्दू संस्करण का नाम था 'हमखुर्मा हमसवाब'।
प्रेमचंद
(३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय
श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं।
उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास
सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल
के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद
ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी
शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक
प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं
शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं
थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद
के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों
के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और
परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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'मंगलसूत्र ' प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। यह अपूर्ण है ।
प्रेमचंद
(३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय
श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं।
उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास
सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल
के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद
ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी
शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक
प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं
शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं
थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद
के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों
के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और
परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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प्रेमचंद
(३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय
श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं।
उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास
सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल
के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद
ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी
शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक
प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं
शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं
थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद
के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों
के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और
परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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'अपनी हिंदी' के सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
अमर कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत
ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन
कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण
वह सदा कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए
कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती
है। मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट !
प्रेमचंद
(३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय
श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं।
उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास
सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल
के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद
ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी
शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक
प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं
शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं
थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद
के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों
के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और
परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी
जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल
कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी
जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल
शीघ्र ढह गया। इसी ताने-बाने पर प्रेमचन्द की सशक्त कलम से बुना कथानक
जीवन की स्थितियों की बारीकी से पड़ताल करता है।
प्रेमचंद
(३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय
श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं।
उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास
सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल
के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद
ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी
शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक
प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं
शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं
थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद
के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों
के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और
परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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कथा सम्राट प्रेमचंद (1880-1936) का पूरा साहित्य, भारत के आम जनमानस की
गाथा है। विषय, मानवीय भावना और समय के अनंत विस्तार तक जाती इनकी रचनाएँ
इतिहास की सीमाओं को तोड़ती हैं, और कालजयी कृतियों में गिनी जाती हैं।
रंगभूमि (1924-1925) उपन्यास ऐसी ही कृति है। नौकरशाही तथा पूँजीवाद के
साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण
जीवन में उपस्थित मध्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित
है। परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं के
बीच राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय
दृष्टिकोण को बहुत ऊँचा उठाता है।
प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय नाम से भी जाना जाता है और उपन्यास सम्राट के नाम से सम्मानित किया जाता है। इस नाम से उन्हें सर्वप्रथम बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने संबोधित किया था।
प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिस पर पूरी शती का साहित्य आगे चल सका। इसने आने वाली एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित किया और साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नीव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था।
वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनके साथ प्रेमचंद की दी हुई विरासत और परंपरा ही काम कर रही थी। बाद की तमाम पीढ़ियों, जिसमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं, को प्रेमचंद के रचना-कर्म ने दिशा प्रदान की।
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Author: Admin
| Posted at: 11:04 am |
Filed Under: जीवनी,
महात्मा गाँधी
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'महात्मा गाँधी' के बारे में तो देश-विदेश में बहुत सा साहित्य लिखा गया है लेकिन कस्तूरबा गाँधी के बारे में ऐसा साहित्य दुर्लभ है.
'हमारी बा' पुस्तक में कस्तूरबा गाँधी का जीवन चरित प्रस्तुत किया गया है. इसे वनमाला पारीख और सुशीला नय्यर ने लिखा है जिन्होंने गाँधी जी के साथ आजादी की लड़ाई में भाग लिया था .
अगर हम स्वतंत्रता संग्राम की ही बात करें तो अनगिनत महिलाओं का नाम
प्रतिबिंबित होता है जो बहुत सक्रिय रहीं सबसे पहली महिला जिनका नाम ही
स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वो हैं 'श्रीमती कस्तूरबा गाँधी'। कस्तूरबा
गाँधी महात्मा गाँधी की पत्नी थी। वह भारत में 'बा' के नाम से विख्यात है।
कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता कुमुक की पहली महिला
प्रतिभागी थीं। कस्तूरबा गाँधी का अपना एक दृष्टिकोण था, उन्हें आज़ादी का
मोल और महिलाओं में शिक्षा की महत्ता का पूरा भान था। स्वतंत्र भारत
के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना उन्होंने ने भी की थी।
उन्होंने हर क़दम पर
अपने पति मोहनदास करमचंद गाँधी जी का साथ निभाया था। 'बा' जैसा आत्मबलिदान
का प्रतीक व्यक्तित्व उनके साथ नहीं होता तो गाँधी जी के सारे अहिंसक
प्रयास इतने कारगर नहीं होते। कस्तूरबा ने अपने नेतृत्व के गुणों का परिचय
भी दिया था। जब-जब गाँधी जी जेल गए थे, वो स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक
प्रयासों में अग्रणी बनी रहीं।
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'बापू के पत्र' पुस्तक में महात्मा गाँधी के उन दुर्लभ पत्रों का संग्रह है जो उन्होंने आश्रम की बहनों के नाम लिखे थे.
महात्मा गाँधी बीसवीं सदी के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति हैं; जिनकी
अप्रत्यक्ष उपस्थिति उनकी मृत्यु के साठ वर्ष बाद भी पूरे देश पर देखी जा
सकती है। उन्होंनेभारतकीकल्पनाकीऔरउसकेलिएकठिनसंघर्षकिया।
स्वाधीनता से उनका अर्थ केवल ब्रिटिश राज से मुक्ति का नहीं था बल्कि वह
गरीबी, निरक्षरता और अस्पृश्यता जैसी बुराइयों से मुक्ति का सपना देखते थे।
वह चाहते थे कि देश के सारे नागरिक समान रूप से आज़ादी और समृद्धि का सुख
पा सकें।
अवश्य पढ़ें।
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'मेरे गुरुदेव ' स्वामीविवेकानंदकीएकचर्चितपुस्तकहै। इस पुस्तक में स्वामी जी ने अपने गुरुदेव रामकृष्णपरमहंस के बारे में चर्चा की है ।
स्वामी विवेकानन्द (१२ जनवरी,१८६३- ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था।उन्होंनेअमेरिकास्थितशिकागोमेंसन्१८९३मेंआयोजितविश्वधर्ममहासम्मेलनमेंसनातनधर्मकाप्रतिनिधित्वकियाथा।
भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा।अत्यन्त गरीबी में भी नरेन्द्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते । उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। रामकृष्ण जी बचपन से ही एक पहुँचे हुए सिद्ध पुरुष थे। स्वामीजी ने कहा था कि जो व्यक्ति पवित्र ढँग से जीवन निर्वाह करता है उसी के लिये अच्छी एकाग्रता प्राप्त करना सम्भव है!
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