
रसखान एक कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। हिन्दी के कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में रसखान का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। रसखान को रस की खान कहा गया है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृगांर रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं।
रसखान कृष्ण भक्त हैं और उनके सगुण और निगुर्ण निराकार रूप दोनों के प्रति श्रध्दावनत हैं। रसखान के सगुण कृष्ण वे सारी लीलाएं करते हैं, जो कृष्ण लीला में प्रचलित रही हैं। यथा - बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं को बखूबी बाँधा है। मथुरा में इनकी समाधि है।
'प्रेमवाटिका' में यह स्वयं लिखते हैं -
तोरि मानिनी तें हियो, फोरि मोहिनी गान।
प्रेमदेव की छबिहिं लखि, भय मियां रसखान।।
इनकी कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए हैं - 'सुजान रसखान' और
'प्रेमवाटिका'। 'सुजान रसखान' में 139 सवैये और कवित्त है। 'प्रेमवाटिका'
में 52 दोहे हैं, जिनमें प्रेम का बड़ा अनूठा निरूपण किया गया है।
रसखानि के सरस सवैय सचमुच बेजोड़ हैं। सवैया का दूसरा नाम 'रसखानि' भी पड़ गया है। शुद्ध व्रजभाषा में रसखानि ने प्रेमभक्ति की अत्यंत सुंदर प्रसादमयी रचनाएँ की हैं। यह एक उच्च कोटि के भक्त कवि थे, इसमें संदेह नहीं।
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6 टिप्पणियां:
बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - एक सलाह - पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने हेतु आगे आएं - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
मानुष हों तो वही रसखान..
बहुत अच्छी प्रस्तुति
बहुत अच्छी किताब आपने उपलब्ध कराया है
लेकिन हम कब से सम्राट चन्द्रगुप्त किताब की प्रतीक्षा कर रहे है कृपा कर के अब ज्यादा इंतजार मत करिए
बहुत अच्छे से डाउन्लोड हुआ धन्यवाद
पुराण भी उपलब्ध कराये
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