उनका व्यंग्य एक निखारा हुआ उच्च कोटि का साफ़-सुथरा व्यंग्य था जो वर्षों वाद आज भी उतना ही चुटीला है, जितना उनके जमाने में था।अकबर इलाहाबादी के पास दूर तक देखने की दृष्टि थी और उसे शब्दों में पिरोने का अनोखा अंदाज़ था।
जबान की पकड़ और विभिन्न सामाजिक पहलुओं की परख, व्यंग्य के माध्यम से इन दोनों का जो संतुलन अकबर की शायरी में सामने आती है, वो अपने आप में ही एक पूरी तालीम है।
अकबर इलाहाबादी विद्रोही स्वभाव के थे। वे रूढ़िवादिता एवं धार्मिक ढोंग के सख्त खिलाफ थे और अपने शेरों में ऐसी प्रवृत्तियों पर तीखा व्यंग्य (तंज) करते थे। उन्होंने 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम देखा था और फिर गांधीजी के नेतृत्व में छिड़े स्वाधीनता आंदोलन के भी गवाह रहे। उनका असली नाम सैयद हुसैन था।
उनका जन्म 16 नवंबर, 1846 में इलाहाबाद में हुआ था। वह अदालत में एक छोटे मुलाजिम थे, लेकिन बाद में कानून का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया और सेशन जज के रूप में रिटायर हुए। इलाहाबाद में ही 9 सितंबर, 1921 को उनकी मृत्यु हो गई।
मयखाना-ए-रिफार्म की चिकनीजमीन परवाइज का खानदान भी आखिर फिसल गयाकैसी नमाज, बार में नाचो जनाबशेखतुमको खबर नहीं जमाना बदल गया
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3 टिप्पणियां:
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - देखें - 'मूर्ख' को भारत सरकार सम्मानित करेगी - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
आज दि० 09-07-2012 को अकबर इलाहाबादी को श्रद्धांजलि के बहाने याद करना बहुत अच्छा लगा। कुछ पंक्तियां मैं भी सामने रखना चाहता हूं
हर गाम पे चन्द आंखें निगरां
हर मोड पे इक लैसंस तलब
इस पार्क में आखिर ऐ अकबर
हमने तो टहलना छोड दिया
घर हूरे–लका को ले आये
हो तुमको मुबारक ऐ अकबर
लेकिन ये कयामत की तुमने
घ्रर से जो निकलना छोड दिया
राम भवन दि्ववेदी
इलाहाबाद
sarafat per hamari kabhi ye iljam aaya tha.
hushn wallo ne hame namard bataya tha.
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