
आप सभी के लिए पेश है एक दुर्लभ पुस्तक - 'प्रेमचंद घर में' । इसे प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने लिखा है।
ये पुस्तक आकर में काफी बड़ी होने के कारण 3 भागों में प्रस्तुत की जा रही है। जिससे आपको डाउनलोड करने में आसानी हो।
'प्रेमचंद घर में' अपने आप मे एक अनूठी पुस्तक है. इसमे एक पत्नी के नजरिए से उस व्यक्ति को समझने की कोशिश की गई है जो कि एक मशहूर लेखक है किंतु स्वयं को एक मजदूर मानता है- 'कलम का मजदूर'.
शिवरानी जी ने बेहद छोटे-छोटे डिटेल्स के माध्यम घर-परिवार , नातेदारी-रिश्तेदारी, लेखन -प्रकाशन की दुनिया में मसरूफ़ प्रेमचंद की एक ऐसी छवि गढ़ी है जो 'देवोपम' नहीं है , न ही वह उनकी 'कहानी सम्राट' और 'उपन्यास सम्राट' की छवि को ग्लैमराइज करती है बल्कि यह तो एक ऐसा 'पति-पत्नी संवाद' है जहां दोनो बराबरी के स्तर पर सवालों से टकराते हैं और उनके जवाब तलाशने की कोशिश मे लगे रहते हैं.
यह पुस्तक इसलिये भी / ही महत्वपूर्ण है कि स्त्री के प्रति एक महान लेखक के किताबी नजरिए को नहीं बल्कि उसकी जिन्दगी के 'फ़लसफ़े' को बहुत ही बारीक ,महीन और विष्लेषणात्मक तरीके से पेश करती है. स्त्री विमर्श के इतिहास और आइने में झांकने के लिये यह एक अनिवार्य संदर्भ ग्रंथ है.
इसमे एक पत्नी के नजरिए से उस व्यक्ति को समझने की कोशिश की गई है जो कि एक मशहूर लेखक है किंतु स्वयं को एक मजदूर मानता है- 'कलम का मजदूर'
प्रेमचंदजी जैसे उच्च कोटि के कलाकार के गृह-जीवन की झांकियां देखने के लिए पाठकों की इच्छा होना सर्वथा स्वाभाविक है और निसन्देह हिन्दी जगत के लिए यह बड़े गौरव की बात है कि श्रीमती शिवरानी देवी ने इन झांकियों को बड़ी स्पष्टता, सहृदयता और ईमानदारी के साथ दिखलाया
एक बात इस ग्रन्थ के प्रत्येक अध्याय से बिल्कुल साफ़-साफ़ ज़ाहिर हो जाती है,
वह यह कि श्रीमती शिवरानीजी का अपना अलग व्यक्तित्व है। उनमें विचार करने का और उन विचारों को प्रगट करने का साहस पहले ही मौजूद रहा है। इस पुस्तक में यद्यपि जगह-जगह पर उनकी पति-भक्ति के उदाहरण विद्यमान हैं, तथापि प्रेमचंदजी से मतभेद होने की भी कई मिसालें उन्होंने दी हैं और उनके कारण स्वयं उनका और पुस्तक का गौरव बहुत बढ़ गया है।
प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश:
मैं गाती थी, वह रोते थे / शिवरानी देवी
बंबई में एक रात बुखार चढ़ा तो दूसरे दिन भी पांच बजे तक बुखार नहीं उतरा. मैं उनके पास बैठी थी. मैंने भी रात को अकेले होने की वजह से खाना नहीं खाया था. कोई छ: बजे के करीब उनका बुखार उतरा.
आप बोले- क्या तुमने भी अभी तक खाना नहीं खाया?
मैं बोली- खाना तो कल शाम से पका ही नहीं.
आप बोले- अच्छा मेरे लिए थोड़ा दूध गरम करो और थोड़ा हलवा बनाओ. मैं हलवा और दूध तैयार करके लाई. दूध तो खुद पी लिया और बोले- यह हलवा तुम खाओ. जब हम दोनो आदमी खा चुके , मैं पास में बैठी.
आप बोले- कुछ पढ़ करके सुनाओ, वह गाने की किताब उठा लो. मैंने गाने की किताब उठाई. उसमें लड़कियों की शादी का गाना था. मैं गाती थी, वह रोते थे. उसके बाद मैं तो देखती नहीं थी, पढ़ने में लगी थी, आप मुझसे बोले- बंद कर दो, बड़ा दर्दनाक गाना है. लड़कियों का जीवन भी क्या है. कहां बेचारी पैदा हों, और कहां जायेंगी, जहां अपना कोई नहीं है. देखो, यह गाने उन औरतों ने बनाए हैं जो बिल्कुल ही पढ़ी-लिखी ना थीं. आजकल कोई एक कविता लिखता है या कवि लोगों का कवि सम्मेलन होता है, तो जैसे मालूम होता है कि जमीन-आसमान एक कर देना चाहते हैं. इन गाने के बनानेवालियों का नाम भी नहीं है.
मैंने पूछा- यह बनानेवाले थे या बनानेवालियां थीं?
आप बोले- नहीं, पुरुष इतना भावुक नहीं हो सकता कि स्त्रियों के अंदर के दर्द को महसूस कर सके. यह तो स्त्रियों ही के बनाए हुए हैं.स्त्रियों का दर्द स्त्रियां ही जान सकती हैं, और उन्हीं के बनाए यह गाने हैं.
मैं बोली- इन गानों को पढ़ते समय मैं तो ना रोई और आप क्यों रो पड़े?
आप बोले- तुम इसको सरसरी निगाह से पढ़ रही हो, उसके अंदर तक तुमने समझने की कोशिश नहीं की. मेरा खयाल है कि तुमने मेरी बीमारी की वजह से दिलेर बनने कोशिश की है.
फाइल का आकार बड़ा होने की वजह से इसे तीन भागों में बांटा गया है ताकि आप इसे आसानी से डाउनलोड कर सकें।
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18 टिप्पणियां:
Premchand ke bare me btati is bahumulay pustak ke liye bahut bahut shukriya :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
samajh me nahi aata aapko dhanyawad kis tarah doo ek adwitiya prayas
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद् । कृपया 'अपनी हिंदी' के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दें और हिंदी भाषा की सेवा करें।
premchand ji ke baare mein jaankari dene wali pustak ke liye bahut bahut dhanyawad..aapka prays adbhut v sarahniya hai
बहुत- बहुत धन्यवाद...मुझे तो आज ही पता चला कि शिवरानी जी भी लिखती थी..
यह पुस्तक डाऊनलोड नहीं हो पा रही है....
भाग २ और ३ डाउनलोड नहीं हो रही है कृपया इसे सुधर कर दे
आप ने अभी तक लिंक सुधार नहीं कृपया इसे सुधर दे लिंक २ और ३ डाउनलोड नहीं हो प् रहा है
धन्यबाद
लिंक २ और ३ डाउनलोड नहीं हो प् रहा है कृपया लिंक सुधार दे
धन्यबाद
हम इस पर कार्य कर रहे है. सूचना के लिए धन्यवाद्!
'प्रेमचंद घर में' को डाउनलोड करने के लिए जो लिंक दी गयी है वह काम नहीं कर रही है. कृपया दूसरी लिंक प्रदान करें. धन्यवाद
link 2aur 3 download ni ho rahe hain
लिंक २ और ३ डाउनलोड नहीं हो प् रहा है
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद् । कृपया 'अपनी हिंदी' के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दें और हिंदी भाषा की सेवा करें।
pratut pustak frankshare per uplabad nahi hai. krupya uplabad karayain.
सभी लिंक फिर से उपलब्ध करवा दिए गए है.
धन्यवाद.
-सम्पादक
link kaam nahi kar rahi . kripya phir se provide karvayen
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