प्रिय पाठकों,
पिछले कुछ महीनो से आपने लगातार जो प्रेम और स्नेह 'अपनी हिंदी' को प्रदान किया है, उसके लिए हम आपके आभारी है। आज हर एक हिंदी प्रेमी के दिल में 'अपनी हिंदी' ने जगह बना ली है . आपके सहयोग के बिना ऐसा हो पाना कतई मुमकिन नहीं था । लेकिन इसके साथ ही 'अपनी हिंदी' को और बेहतर बनाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
पिछले कई दिनों से हम इन विषयों के बारे में जानकारी देने की सोच रहे थे इसलिए आपसे कुछ विषयों पर बात करना चाहते है और कुछ सूचना, कुछ निर्देश देना चाहते है जो कि निम्न प्रकार से है:
(इन निर्देशों का मकसद किसी प्रकार की पाबंदिया लागू करना नहीं है, बल्कि 'अपनी हिंदी' को और बेहतर बनाना है।)
1. फरमायश करते समय कृपया ध्यान रखें :
(A) कृपया फरमायश करते समय अपना नाम, पता जरूर दें। इसमें किसी तरह से डरने या घबराने या अपना नाम छुपाने की जरूरत नहीं है। ' अपनी हिंदी' आपका अपना मंच है। खुले दिल से मांग भी करें और इसमें योगदान भी करें। 'बेनामी' और अधूरी फरमायश पर गौर नहीं किया जायेगा।
(B) कृपया फरमायश करने के लिए सही जगह का प्रयोग करें। इसके लिए ऊपर खास तौर से तैयार किया गया
'आपकी फरमायश' लिंक दिया गया है। इसी में अपनी फरमायश दें। अन्यत्र की गयी फरमायश पर हम गौर नहीं करते । करते भी है तो बहुत देर में करते है।
(C) फरमायश करते समय पुस्तक, लेखक, प्रकाशक के बारे में अधिक से अधिक जानकारी देने का प्रयास करें। ताकि पुस्तक को खोजने में आसानी हो सकें।
(D) फरमायश करते समय शिष्ट भाषा का प्रयोग करें।
हमारे पास कई बार ई-मेल आती है जिनमे लिखा होता है -
give me this book
या लिखा होता है -
email me this book. I urgently need this.
ना तो खुद के बारे में कोई जानकारी दी होती है, ना ही पुस्तक के बारे में ।
हम ई-मेल के द्वारा कोई भी पुस्तक नहीं भेजते है। हमारी पुस्तके पुरे समुदाय के लिए है, किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं। और फिर ऐसा करना व्यावहारिक रूप से संभव भी नहीं है।
जो भी पुस्तक प्रकाशित की जाती है, पूरी दुनिया के पाठकों के लिए एक साथ 'अपनी हिंदी' पर प्रकाशित की जाती है। इसलिए कृपया इस तरह का अनुरोध ना करें।
(E) किसी पुस्तक की फरमायश करने से पहले 'अपनी हिंदी' पर उस पुस्तक को ढूंढे। हमारे पास कई ऐसी पुस्तकों की फरमायश आती है जो पहले से यहाँ उपलब्ध है। इसका उदहारण आप 'आपकी फरमायश' के अंतर्गत देख सकते है।
उदहारण के लिए चंद्रकांता एक ऐसी पुस्तक है जो हमने सबसे पहले इस साईट पर उपलब्ध करवाई थी लेकिन हमें अब तक उसकी फरमायश मिलती रहती है।
और हाँ, सर्च करते समय 'हिंदी भाषा' का प्रयोग करें । अगर आपको हिंदी में टाइप करना नहीं आता तो आप गूगल की इस वेबसाइट पर हिंदी में टाइप कर सकते है और उसे copy करके 'अपनी हिंदी' के search box में Paste करके सर्च कर सकते है जो की दायीं तरफ मेनू के नीचे दिया गया है।
इस वेबसाइट का पता है:
http://www.google.com/transliterate/
(2.) उन सभी पाठकों का बहुत बहुत धन्यवाद् जो हमारे पास पुस्तके भेज रहे है.
कृपया ध्यान रखें, अगर आप कोई पुस्तक हमारे पास भेज रहे है तो उसके बारे में आपको जो भी जानकारी उपलब्ध हो, उसे भी हमारे पास भेजने की कृपा करें। इससे हमें काफी आसानी रहेगी।
(३.) कृपया 'अपनी हिंदी' को और बेहतर बनाने के लिए हमें अपने सुझाव दें तथा इसे और बेहतर बनाने में अपना योगदान दें। आप अपने सुझाव/कमेंट्स इसी पोस्ट के नीचे दे सकते है ।
(4.) 'अपनी हिंदी' आपका अपना मंच है। हम भी आप ही की तरह इसमें योगदान कर रहे है। ये एक पूर्णतया निशुल्क माध्यम है हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने का और हिंदी साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने का । बल्कि हम तो अपने आपको किसी ऐसे NGO से कम नहीं मानते जो देश-सेवा का कोई काम कर रहा हो। आखिर 'हिंदी' भाषा की सेवा भी 'हिंदुस्तान' की सेवा ही तो है।
कृपया 'अपनी हिंदी' के बारे में अपने मित्रो-परिचितों को भी बताएं ताकि वे भी इसका लाभ उठा सकें । विदेशों में तो लोग पुस्तकें खरीद-खरीद कर अपने मित्रो-परिचितों को भेंट में देते है। आप बिना कोई शुल्क अदा किये ही ये काम कर सकते है।
(5) अगर आपके पास कोई हिंदी पुस्तक उपलब्ध हो तो उसे स्कैन करके अपनी हिंदी को ईमेल करें। इसके लिए ऊपर Submit A Book नाम से लिंक दिया हुआ है जिसमे आपको सभी जानकारी मिल जाएगी।
(6.) पुस्तक डाउनलोड करने में कोई समस्या हो तो पहले यहाँ क्लिक करें। अगर फिर भी समस्या ना सुलझे तो उसे सम्बंधित फाइल की पोस्ट के नीचे कमेन्ट के रूप में हमें बताएं।
(7.) अगर किसी फाइल को खोलने के लिए पासवर्ड की जरूरत पड़े तो hindilove आजमा कर देखें। अधिकतर फाइल बिना पासवर्ड के ही है।
अगले कुछ दिनों में हम आपको लगातार ऐसी पुस्तकें उपलब्ध करवाएंगे जिनका अभी तक आपने सिर्फ नाम सुना होगा (या शायद वो भी नहीं सुना होगा)। जिन्हें पढने की तो आपने कभी उम्मीद भी नहीं की होगी । हिंदी भाषा के कुछ अनमोल रत्न आपको उपलब्ध होंगे सिर्फ 'अपनी हिंदी' पर।
तो आते रहिये 'अपनी हिंदी' पर।
जय हिंदी, जय भारत।
वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक, किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। - आचार्य श्रीराम शर्मा

कृपया दायीं तरफ दिए गए 'हमारे प्रशंसक' लिंक पर क्लिक करके 'अपनी हिंदी' के सदस्य बनें और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दें। सदस्यता निशुल्क है।

बुधवार, 20 जुलाई 2011
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6 टिप्पणियां:
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
हिंदी तो अपनी मातृभाषा है, इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए. हिंदी दिवस पर आप सभी को ढेरों बधाइयाँ और प्यार !!
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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
आपका ये प्रयास बहुत सराहनीय है। धन्यवाद और हिन्दी दिवस की शुभकामनायें।
आप हिंदी पुस्तकें उपलब्ध करा कर वास्तव में देश सेवा कर रहे हैं , जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं...।
अन्य अनमोल पुस्तकों की प्रतीक्षा रहेगी...।
प्रियंका गुप्ता
Bahut Bahut Dhanyabad hindi ke sewa ke liye.
aap wastw me hindi ke liye bahut kuch kar rahe hai
ek bar fir se shukriya
आपका प्रयास सराहनीय है... मुझे इसका अच्छा लाभ मिला है...
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