
मीराबाई
कृष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री हैं।
मीरा की महानता और उनकी लोकप्रियता उनके पदों और रचनाओं की वजह से भी है. ये पद और रचनाएं राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं. हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीरा के पद हमारे देश की अनमोल संपत्ति हैं.
आंसुओं
से गीले ये पद गीतिकाव्य के उत्तम नमूने हैं. मीराबाई ने अपने पदों में
श्रृंगार और शांत रस का प्रयोग विशेष रुप से किया है. भावों की सुकुमारता
और निराडंबरी सहजशैली की सरसता के कारण मीरा की व्यथासिक्त पदावली बरबस
सबको आकर्षित कर लेती हैं.
मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की .बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद और राग सोरठ के पद मीरबाई द्वारा रचे गए ग्रंथ हैं. इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन “मीराबाई की पदावली’ नामक ग्रन्थ में किया गया है.
कहा जाता है कि मीराबाई रणछोड़ जी में समा गई थीं. मीराबाई की मृत्यु के विषय में किसी भी तथ्य का स्पष्टीकरण आज तक नहीं हो सका है.
उनका जन्म १५०४ ईस्वी में जोधपुर के ग्राम कुड्की में हुआ था। उनके पिता का नाम रत्नसिंह था। उनके पति कुंवर भोजराज उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहांत हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हे पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु मीरां इसके लिये तैयार नही हुई |
वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। कुछ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर दिया और तीर्थाटन को निकल गईं। वे बहुत दिनों तक वृंदावन में रहीं और फिर द्वारिका चली गईं। जहाँ संवत १५६० ईस्वी में उनका देहांत माना जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक में मीराबाई का जीवन चरित सरल कहानी के रूप में पेश किया गया है।
फाइल का आकार: 14 Mb
पृष्ठ संख्या: 270
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2 टिप्पणियां:
आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को श्री कृष्ण जन्म की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!
कृष्ण प्रेम मयी राधा
राधा प्रेममयो हरी
♫ फ़लक पे झूम रही साँवली घटायें हैं
रंग मेरे गोविन्द का चुरा लाई हैं
रश्मियाँ श्याम के कुण्डल से जब निकलती हैं
गोया आकाश मे बिजलियाँ चमकती हैं
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
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