आइये आपको ले चलते है हास्य कवि सम्मलेन में :
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वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक, किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। - आचार्य श्रीराम शर्मा

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बुधवार, 1 सितंबर 2010
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6 टिप्पणियां:
जो कुछ यहां है उसे परिभाषा के उदारतम प्रयोग से भी कविता नहीं कहा जा सकता.
आजकल के कवि सम्मलेन ऐसे ही होते है। इनमे कविता की बजाय तुकबंदी पर जयादा ध्यान होता है।
वाह अति सुंदर हास्य रस का पूरा आनंद आपने एक ही जगह पर संग्रहित किया धन्यवाद...
ध्यान देने की बात है कि हास्य तो ऐसी ही बातो पर आता है...
अति सुन्दर प्रयास . बहुत बहुत धन्यवाद् .
नेट पर आचानक एक दिन मुझे आपनी हिंदी मिल गई . तब से में इसका मुरीद हो गया . नया होने के कर्ण कुछ परेशानी हो रही है. पर जल्द ही सिख जाऊंगा . और लुफ्त उठाऊंगा
Ise "kavita" kah kar kripyaa " kavita" ka apmaan na kareN....is ke liye sirf kavi hi nahi shrotaa (audience) bhi jimmedaar hai...ki aisee kavitaa par taaliyaan bajaati hai
Anand.pathak
Www.akpathak3107.blogspot.com
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