
'राखी की लाज' वृन्दावनलाल वर्मा का एक प्रसिद्ध नाटक है।
प्रस्तुत नाटक बीरबल, जहाँदारशाह के जीवन पर आधारित है .
आवारा मेघराज की गाँठ में राखी बँधने के समय पैसे न थे, अथवा वह राखी बाँधने वाली अपनी बहन को पैसों से बढ़कर कुछ और देना चाहता था-और उसने दिया।विंध्यखंड में क्या, हिंदुस्थान भर में सावन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। बहन भाई को राखी बाँधती है और भाई उसको कुछ देता है। असल में परंपरा इस राखी के डोरे द्वारा बहन के सिर पर भाई की रक्षा का हाथ रखवा देने की है, जो कभी न हटना चाहिए। प्रतिवर्ष सावन की पूनो को इस बंधन की आवृत्ति होती है। जब कोई लड़की या स्त्री किसी ऐसे पुरुष को राखी बाँध देती है, जो उसका भाई नहीं है, तब वह राखी उन दोनों के बीच में भाई बहन का संबंध स्थापित कर देती है और इस बहन की रक्षा का भार उस भाई पर आ जाता है। अधिकांश पुरुष इस भार को पैसे दे-दिवाकर सिर से उतार देते हैं। और करें भी तो क्या ! इतनी राखियाँ हाथ में पड़ जाती हैं कि समस्या का हल परंपरा ने पैसे या चाँदी के दान द्वारा सहज कर दिया है।
परंतु आवारा मेघराज की गाँठ में राखी बँधने के समय पैसे न थे, अथवा वह राखी बाँधने वाली अपनी बहन को पैसों से बढ़कर कुछ और देना चाहता था-और उसने दिया।
यह नाटक नई सज-धज और नए लिंकों के साथ फिर से प्रस्तुत किया जा रहा है.
फाइल का आकार: 9 Mb
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4 टिप्पणियां:
जानकारी और लिंक का आभार .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
बेहतरीन और अच्छी पोस्ट
शुभकामनाएं
आपकी पोस्ट ब्लाग वार्ता पर
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद्। कृपया फिर पधारें।
bahut hi anmol site hai pure bharat me iska prachar hona chaiheye
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