
'परशुराम की प्रतीक्षा' रामधारी सिंह दिनकर का एक चर्चित कविता संग्रह है।
नेफ़ा-युद्ध के प्रसंग में भगवान् परशुराम का नाम अत्यन्त समीचीन है। जब परशुराम पर मातृ-हत्या का पाप चढ़ा, वे उससे मुक्ति पाने को सभी तीर्थों में फिरे, किन्तु, कहीं भी परशु पर से उनकी वज्रमूठ नहीं खुली यानी उनके मन में से पाप का भान नहीं दूर हुआ। तब पिता ने उनसे कहा कि कैलास के समीप जो ब्रह्मकुण्ड है, उसमें स्नान करने से यह पाप छूट जायगा। निदान, परशुराम हिमालय पर चढ़कर कैलास पहुँचे और ब्रह्मकुण्ड में उन्होंने स्नान किया। ब्रह्मकुण्ड में डुबकी लगाते ही परशु उनके हाश से छूट कर गिर गया अर्थात् उनका मन पाप-मुक्त हो गया।
रामधारी सिंह दिनकर स्वतंत्रता पूर्व के विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने जाते रहे। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रांति की पुकार है, तो दूसरी ओर कोमल श्रृँगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें कुरूक्षेत्र और उवर्शी में मिलता है।
यह पुस्तक हमें राजकोट से श्री विवेक कुमार ने भेजी है . विवेक जी, आपका बहुत - बहुत धन्यवाद् .
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4 टिप्पणियां:
अनुपम प्रस्तुति ........... ।
हार्दिक धन्यवाद ... ।
इस पुस्तक को मैं काफी समय से ढूंढ रहा था ... अब जाकर आपके कारण मुझे उपलब्ध हो सकी ..... । मैं किस शब्दों में धन्यवाद करूँ बता नहीं सकता ।
Dinkar ji ki vipathga agar ho to post karen...
nagesh03@gmail.com kripya ek pratu meri id pe preshit karen
For More Info
http://bhagwan-parshuram.blogspot.com/
plzzz right link bta do plzzz
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