किताबघर पर प्रस्तुत है - महान साहित्यकार यशपाल जी की कहानी - धर्म-युद्ध ।
यद्यपि धर्म और युद्ध दो अलग-अलग चीजे है । परन्तु कभी युद्ध के लिए धर्म अपनाना पड़ता है और कभी धर्म के लिए युद्ध करना पड़ता है।
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वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक, किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। - आचार्य श्रीराम शर्मा

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मंगलवार, 9 मार्च 2010
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4 टिप्पणियां:
क्या आप श्री यशपाल जी का प्रसिद्ध उपन्यास झूठा सच यहाँ पर दे सकते हैं? एक अरसे से उसे पाने को लालायित हुँ और हमेंशा ही अपनी हिन्दी से यह उम्मीद लगी रही है कि मेरी चाह शायद यहीं पूरी हो पाएगी!! आशा है कि मै यहाँ से निराश नहीं लौटूँगा. ध्न्यवाद ......
ब्रिजेश एल. नाईक. गांधीनगर (गुजरात)
जल्द ही आपकी इच्छा पूरी होने वाली है.
yahan nirmal verma ki koi bhi rachna nahi hai.kripya kuch publish kare
Sir,The link here leads to a webpage on rapidshare which gives a message saying that this link has been deleted..Please look into it.Thank you,
Kumar Saurav.Pune
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