
आज हम आप सभी की मांग पर फिर से प्रकाशित कर रहे है - श्री हरिवंश राय बच्चन का काव्य-संग्रह - मधुबाला ।
कुछ पाठकों की शिकायत थी की पुस्तक खुल नहीं रही है। इसीलिए इसे फिर से प्रकाशित किया जा रहा है।
मधुबाला की रचना लेखक ने १९३४-३५ में की थी ।
अग्रणी कवि बच्चन की कविता का आरंभ तीसरे दशक के मध्य ‘मधु’ अथवा मदिरा के इर्द-गिर्द हुआ और ‘मधुशाला’ से आरंभ कर ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ एक-एक वर्ष के अंतर से प्रकाशित हुए। ये बहुत लोकप्रिय हुए और प्रथम ‘मधुशाला’ ने तो धूम ही मचा दी। यह दरअसल हिन्दी साहित्य की आत्मा का ही अंग बन गई है और कालजयी रचनाओं की श्रेणी में खड़ी हुई है।
इन कविताओं की रचना के समय कवि की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है।
कुछ अंश:
मैं मधुबाला मधुशाला की,
मैं मधुशाला की मधुबाला!
मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,
मधु के धट मुझ पर बलिहारी,
प्यालों की मैं सुषमा सारी,
मेरा रुख देखा करती है मधु-प्यासे नयनों की माला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!
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