वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक, किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। - आचार्य श्रीराम शर्मा
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स्वदेश राणा एक सशक्त लेखिका हैं और उनका नवीनतम उपन्यास "
कोठेवाली " काफ़ी चर्चित रहा है।
स्वदेश राणा हिन्दी की उन लेखिकाओं में से हैं जिन्होंने परदेस की आबोहवा में भी अपनी जुब़ान की खुशबू को बनाए रखा है। विद्यार्थी जीवन में वे मेधावी छात्र रहीं और बाद में देश विदेश के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करती रहीं।
बी. ए. की डिग्री में अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों में तब तक के सबसे अधिक अंक प्राप्त किये। राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि चंडीगढ़ विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक के साथ। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शोध, तब तक के रेकॉर्ड में सबसे कम समय में। दिल्ली में इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एण्ड एनालिसिस में सीनियर रिसर्च असोसियेट रहीं और फिर संयुक्त राष्ट्र में डिसआर्ममेंट विभाग की कन्वेन्शनल आर्मस शाखा की प्रमुख का पद संभालने वाली प्रथम महिला बनीं। काम के सिलसिले में ३५-४० देशों की यात्राएँ कीं और १०० - १५० राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों व मानदों से सम्मानित हुईं।
जर्मनी, स्विटज़रलैंड, कीनिया व अर्जेन्टीना की सरकारों के लिए सलाहकार रहीं और अब वर्ल्ड पालिसी इंस्टीट्यूट की सदस्य हैं।
लेखन में बचपन से रूचि रही। कुछ नज्में भारत की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित। 'कोठेवाली' कहीं भी प्रकाशित होने वाला उनका पहला उपन्यास है।
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होली के इस अवसर पर आप सभी के लिए पेश है - होली रंग घोली ।
होली रंग घोली पुस्तक में होली के चुटीले गीत दिए गए है । श्री
किशोरीलाल गोस्वामी की लिखी हुई ये पुस्तक सन 1915 में प्रकाशित हुई थी ।
अवश्य पढ़ें ।
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प्रिय पाठकों,
किताबघर में आज पेश है -
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी - आत्माराम ।
बहुत ही अच्छी कहानी है ।
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प्रिय पाठकों,
किताबघर में आज पेश है -
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी - गुल्ली-डंडा ।
यद्यपि हो सकता है कि आपमें से बहुतो ने ये कहानी पहले पढ़ी हो , फिर भी जिन्होंने नहीं पढ़ी उनको इसे पढ़कर बहुत ख़ुशी होगी । बहुत ही अच्छी कहानी है ।
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प्रिय पाठको,
आप सभी के लिए किताबघर में पेश है -
अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोष ।
यह एक बहुत ही उपयोगी पुस्तक है। आशा है कि आप सभी को पसंद आएगी।
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किताबघर के पाठकों के लिए आज प्रस्तुत है -
श्री रामचरितमानस की पुस्तक ।
यह पुस्तक हिंदी में है और इसका अंग्रेजी अनुवाद भी दिया गया है।
संत गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के नाम से आज कौन परिचित नहीं है। जिस तरह गुलाब का फूल बारहमासी होता है तथा हर क्षेत्र, हर रंग में पाया जाता है, उसी तरह रामचरितमानस का पाठ भी हर घर में आनन्द और उत्साहपूर्वक होता है।विद्वान साहित्यकार भी अपने आलेखॊं में मानस की पंक्तियों का उल्लेख कर अपनी बात को प्रमाणित करते हैं। तात्पर्य यह कि इसके द्वारा सामाजिक, पारिवारिक, राजनैतिक सभी समस्याओं का समाधान सम्भव है। इस प्रकार रामचरितमानस विश्व का अनमोल ग्रंथ है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
रामचरित मानस एहिनामा
सुनत श्रवन पाइअ विश्रामा॥
श्री राम चरित मानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में रचा एक महाकाव्य है। श्री रामचरित मानस भारतीय संस्कृति मे एक विशेष स्थान रखती है। उत्तर भारत में रामायण के रूप में कई लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। श्री राम चरित मानस में श्री राम को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में दर्शाया गया है जब कि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक मानव के रूप में दिखाया गया है। तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। शरद नवरात्रि में इस के सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है।
रामचरित मानस १५वीं शताब्दी के कवि गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखा गया महाकाव्य है। जैसा कि तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरंभ अयोध्यापुरी में विक्रम संवत १६३१ (१५७४ ईस्वी) के रामनवमी, जो कि मंगलवार था, को किया था। गीताप्रेस गोरखपुर के श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के अनुसार रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाह के दिन उसे पूर्ण किया था. इस महाकाव्य की भाषा अवधी है जो कि हिंदी की ही एक शाखा है। रामचरितमानस को हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। रामचरितमानस को सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसी कृत रामायण' भी कहा जाता है।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचन्द्र, जिन्हें कि केवल राम भी कहा जाता है, के निर्मल एवं विशद् चरित्र का वर्णन किया है। महर्षि वाल्मीकि रचित संस्कृत रचना रामायण को रामचरितमानस का आधार माना जाता है। यद्यपि रामायण और रामचरितमानस दोनों में ही राम के चरित्र का वर्णन है परंतु दोनों ही महाकाव्यों के रचने वाले कवियों की वर्णन शैली में उल्लेखनीय अंतर है। जहाँ वाल्मीकि ने रामायण में राम को केवल एक सांसारिक व्यक्ति के रूप में दर्शाया है वहीं तुलसीदास ने रामचरितमानस में राम को भगवान विष्णु का अवतार माना है।
पृष्ठ संख्या : 1120
आकार: 6 Mb
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'बड़े भाई साहेब' प्रेमचंद की एक मशहूर कहानी है। इसमें दो भाइयों की कथा दी गयी है। कहानी बहुत ही मनोरंजक है। अवश्य पढ़ें ।
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प्रिय पाठकों,
आज आपके लिए पेश है -
श्री श्याम नारायण पाण्डेय का महाकाव्य - हल्दीघाटी ।
श्याम नारायण पाण्डेय (1907 - 1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि हैं। पाण्डेयजी वीर रस के अनन्य गायक हैं। इन्होंने चार महाकाव्य रचे, जिनमें 'हल्दीघाटी' और 'जौहर' विशेष चर्चित हुए। 'हल्दीघाटी' में महाराणा प्रताप के जीवन और 'जौहर' में रानी पद्मिनी के आख्यान हैं।
'हल्दीघाटी' पर इन्हें देव पुरस्कार प्राप्त हुआ। अपनी ओजस्वी वाणी के कारण ये कवि सम्मेलनों में बडे लोकप्रिय थे।
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आज किताबघर में पेश है हिंदी के जाने-माने साहित्यकार प्रेमचंद की कहानी - सवा सेर गेहूं ।
इस कहानी में प्रेमचंद ने एक किसान की जिंदगी और उसकी मजबूरियों को बखूबी चित्रित किया है।
अवश्य पढ़ें ।
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रामवृक्ष बेनीपुरी भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक के रूप में अविस्मणीय विभूति हैं। बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग प्रसिद्ध साहित्यकार हैं।
उनकी अनेक रचनायें जो यश कलगी के समान हैं उनमें जय प्रकाश, नेत्रदान, सीता की मां, 'विजेता', 'मील के पत्थर', 'गेहूं और गुलाब' शामिल है। 'शेक्सपीयर के गांव में' और 'नींव की ईंट'। इन लेखों में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने देश प्रेम, साहित्य प्रेम, त्याग की महत्ता, साहित्यकारों के प्रति सम्मान भाव दर्शाया है वह अविस्मरणीय है। इंगलैंड में शेक्सपियर के प्रति जो आदर भाव उन्हें देखने को मिला वह उन्हें सुखद भी लगा और दु:खद भी। शेक्सपियर के गांव के मकान को कितनी संभाल, रक्षण-सजावट के साथ संभाला गया है। उनकी कृतियों की मूर्तियों बनाकर वहां रखी गई है, यह सब देख कर वे प्रसन्न हुए। पर दुखी इस बात से हुए कि हमारे देश में सरकार भूषण, बिहारी, सूरदास, जायसी आदि महान साहित्यकारों के जन्म स्थल की सुरक्षा या उन्हें स्मारक का रूप देने का प्रयास नहीं करती। उनके मन में अपने प्राचीन महान साहित्यकारों के प्रति अति गहन आदर भाव था। इसी प्रकार 'नींव की ईंट' में भाव था कि जो लोग इमारत बनाने में तन-मन कुर्बान करते है वे अंधकार में विलीन हो जाते हैं। बाहर रहने वाले गुम्बद बनते हैं और स्वर्ण पत्र से सजाये जाते हैं। चोटी पर चढ़ने वाली ईंट कभी नींव की ईंट को याद नहीं करती।
'कैदी की पत्नी' उनका प्रसिद्ध उपन्यास है जिसमे दिखाया गया है कि जब नायिका का पति जेल चला जाता है तो उस पर क्या बीतती है और वो इसका सामना कैसे करती है।
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किताबघर में इस बार पेश है
नागार्जुन का प्रसिद्ध उपन्यास - बाबा बटेसरनाथ ।
नागार्जुन का मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। इनका जन्म दरभंगा जिले में तरौनी गांव में हुआ। संस्कृत की उच्च शिक्षा काशी में पाई। नागार्जुन ने सोवियत संघ, श्रीलंका तथा तिब्बत की यात्राएं कीं, किसान आंदोलन में भाग लिया और जेल गए। ये जनवादी कवि थे। इनके मुख्य कविता संग्रह हैं- 'सतरंगे पंखों वाली, 'प्यासी पथराई आंखें, 'खिचडी विप्लव देखा हमने, 'तुमने कहा था, 'हजार-हजार बांहों वालीं, 'आखिर ऐसा क्या कर दिया मैंने आदि।
उपन्यास 'बाबा बटेसर नाथ पुरस्कृत हुआ। मैथिली काव्य-संग्रह 'पत्रहीन नग्न गाछ पर को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
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'ग्राम्या' सुमित्रानंदन पन्त की विश्व-प्रसिद्ध रचना है। ग्राम्या में सुमित्रानंदन पंत की सन 1939 से 1940 के बीच लिखी गई कविताओं का संग्रह है।
पन्त जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार थे। सुमित्रानंदन पन्त जी सुकोमल भावनाओ के कवि है। उनमे निराला जैसी संघर्षमयता और पौरुष नही है। इनके काव्य में अनेकरूपता है किंतु वे अपनी सौन्दर्य-दृष्टि और सुकुमार उदात्त कल्पना के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध है। निसंग्रत वे प्रकृति के सुकुमार कवि है। प्रकृति के साथ उनकी प्रगाढ़ रागाताम्कता शैशव से हो गई थी। इन्होने प्रकृति में अनेक रूपों की कल्पना की है। इन्होने प्रकृति के अनेक सौदर्यमय चित्र अंकित किए है और इसके साथ उनके उग्र रूप का भी चित्रण किया है किंतु इनकी वृत्ति मूलतः प्रकृति के मनोरम रूप वर्णन में ही रमी है। पन्त काव्य की रेखाए चाहे टेढी- मेढ़ी है, किंतु उनका विकासक्रम सीधा है। इस क्रम में हम पन्त को छायावादी ,प्रगतिवादी ,समन्वय वादी एवं मानववादी आदि रूप में देख सकते है। पन्त जी सन १९३३ से लगभग छायावादी से प्रगतिवादी बन गए। युगांत में आकर पन्त में छायावादी रूप का अंत हो जाता है। ग्राम्या,युगवाणी इनकी प्रगतिवादी रचनाये है। इसके बाद इनकी रचनाओं में मानवतावादी दृष्टिकोण उत्तरोतर विकसित होता गया। इसके अनंतर इनके समन्वयवादी रूप को निहारा जा सकता है :'ग्राम्या' से एक झलक :
ग्राम युवती
उन्मद यौवन से उभर
घटा सी नव असाढ़ की सुन्दर
अति श्याम वरण,
श्लथ, मंद चरण,
इठलाती आती ग्राम युवति
वह गजगति
सर्प डगर पर !
सरकती पट,
खिसकाती लट, -
शरमाती झट
वह नमित दृष्टि से देख उरोजों के युग घट !
हँसती खलखल
अबला चंचल
ज्यों फूट पड़ा हो स्रोत सरल
भर फेनोज्ज्वल दशनों से अधरों के तट !
वह मग में रुक,
मानो कुछ झुक,
आँचल सँभालती, फेर नयन मुख,
पा प्रिय पद की आहट;
आ ग्राम युवक,
प्रेमी याचक
जब उसे ताकता है इकटक,
उल्लसित,
चकित,
वह लेती मूँद पलक पट !
पनघट पर
मोहित नारी नर !-
जब जल से भर
भारी गागर
खींचती उबहनी वह, बरबस
चोली से उभर उभर कसमस
खिंचते सँग युग रस भरे कलश;-
जल छलकाती,
रस बरसाती,
बल खाती वह घर को जाती,
सिर पर घट
उर पर धर पट !
कानों में गुड़हल
खोंस, -धवल
या कुँई, कनेर, लोध पाटल;
वह हरसिंगार से कच सँवार,
मृदु मौलसिरी के गूँथ हार,
गउओं सँग करती वन विहार,
पिक चातक के सँग दे पुकार,-
वह कुंद, काँस से,
अमलतास से,
आम्र मौर, सहजन पलाश से,
निर्जन में सज ऋतु सिंगार !
तन पर यौवन सुषमाशाली
मुख पर श्रमकण, रवि की लाली,
सिर पर धर स्वर्ण शस्य डाली,
वह मेड़ों पर आती जाती,
उरु मटकाती,
कटि लचकाती
चिर वर्षातप हिम की पाली
धनि श्याम वरण,
अति क्षिप्र चरण,
अधरों से धरे पकी बाली !
रे दो दिन का
उसका यौवन !
सपना छिन का
रहता न स्मरण !
दुःखों से पिस,
दुर्दिन में घिस,
जर्जर हो जाता उसका तन !
ढह जाता असमय यौवन धन !
बह जाता तट का तिनका
जो लहरों से हँस खेला कुछ क्षण !!
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किताबघर के पाठकों के लिए पेश है
गुणाकर मुले की पुस्तक -आर्यभट ।
यह पुस्तक प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ आर्यभट के जीवन पर आधारित है.
आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है।
उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, सामानान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभट्टीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट्ट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित की।
आर्यभट का भारत और विश्व के ज्योतिष सिद्धान्त पर बहुत प्रभाव रहा है। भारत में सबसे अधिक प्रभाव केरल प्रदेश की ज्योतिष परम्परा पर रहा। आर्यभट भारतीय गणितज्ञों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन्होंने 120 आर्याछंदों में ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांत और उससे संबंधित गणित को सूत्ररूप में अपने आर्यभटीय ग्रंथ में लिखा है। उन्होंने एक ओर गणित में पूर्ववर्ती आर्किमिडीज़ से भी अधिक सही तथा सुनिश्चित पाई के मान को निरूपित किया तो दूसरी ओर खगोलविज्ञान में सबसे पहली बार उदाहरण के साथ यह घोषित किया गया कि स्वयं पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।आर्यभट ने ज्योतिषशास्त्र के आजकल के उन्नत साधनों के बिना जो खोज की थी, उनकी महत्ता है। कोपर्निकस ने जो खोज की थी उसकी खोज आर्यभट हजार वर्ष पहले कर चुके थे।
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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (७ मार्च, १९११- ४ अप्रैल, १९८७) को प्रतिभासम्पन्न कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देनेवाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म ७ मार्च १९११ को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर नामक ऐतिहासिक स्थान में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एस.सी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर फरार हुए और १९३० ई. के अन्त में पकड़ लिए गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।
प्रस्तुत पुस्तक में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' के निजी निबंधों का संकलन है । ये पुस्तक लेखक के निजी जीवन पर रोशनी डालती है । इन्हें पढ़कर इस महान लेखक के बारे में बहुत सी जानकारियां मिलती है।
ये निबंध अज्ञेय ने समय-समय पर लिखे है जिन्हें बाद में पुस्तकाकार में प्रकाशित किया गया है।
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प्रिय पाठकों,
इस बार किताबघर में पेश है स्वास्थ्य विषयक एक और पुस्तक -
आरोग्यता और उसके लाभ ।
इस पुस्तक में आरोग्यता का महत्व बताया गया है तथा निरोगी रहने के उपाय बताये गए है। यदि इन उपायों पर अमल किया जाये तो रोगी निरोग हो जाता है और स्वस्थ व्यक्ति सदा निरोग रहता है।
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इस पुस्तक में सामान्य हृदय रोगों के कारण और निवारण के बारे में बताया गया है। आजकल हृदय रोगों का खतरा बहुत बढ़ गया है। इसलिए यह पुस्तक सभी को पढनी चाहिए।
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