
देवी चौधरानी बंकिम चंद्र का एक सर्वकालिक महान उपन्यास है। इसमें एक निष्ठावान नारी की मर्मस्पर्शी कथा दी गयी है । अवश्य पढ़ें।
पुस्तक के कुछ अंश:
हां, मैं सागर हूं। गंगा नहीं, यमुना नहीं, ताल नहीं, तलैया नहीं—साक्षात् सागर हूं। तुम्हारा दुर्भाग्य है न ? जब दूसरे की औरत समझा तो पैर बड़े मजे से दबा रहे थे और जब घर की औरत ने पैर दबाने को कहा तो बहुत क्रोधित होकर चले गए। खैर, मेरा वचन पूरा हुआ और तुम्हारा भी। तुमने मेरे पैर दबा दिए, अब मेरा मुंह देख सकते हो। चाहे अब चरणों में रखो या त्याग दो। देख लिया न, मैं वास्तव में ब्राह्मण की बेटी हूं।
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5 टिप्पणियां:
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sab bekaar, timepass
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