
बिराज बहू - उपन्यास (शरत चंद्र)
स्वामि-भक्ति का पाठ पढ़ाकर पुरुष ने नारी को अपने हाथ का खिलौना बना लिया। विराज भी ऐसे ही वातावरण में पली थी। उसने अपने पति को ही सर्वस्व मान लिया था उसने स्वयं दु:ख बर्दाश्त किया, परन्तु पति को सुखी रखने की हर तरह से चेष्टा की।
लेकिन इस सबके बदले में उसे मिला क्या ?..........
बिराज बहू शरत चंद्र का एक बहुत ही मार्मिक उपन्यास है। इसमे मानवीय भावनाओ को बहुत ही प्रभावी ढंग से उकेरा गया है। अवश्य पढ़ें।
फाइल का आकार: 5 Mb
8 डाउनलोड लिंक (Rapidshare, Hotfile आदि) :
कृपया यहाँ क्लिक करें
(क्लिक करने पर नया पेज खुलेगा जिस पर कई लिंक दिए हुए होंगे । किसी भी एक लिंक के आगे लिखे हुए 'Download File' पर क्लिक करें । डाउनलोड बिलकुल मुफ्त है। )
ये पुस्तक आपको कैसी लगी? कृपया अपनी टिप्पणियां अवश्य दें।
1 टिप्पणियां:
bilkul sahi hai.. bas tajjub hota hai ki ppurush hote hue bhi Sharat ji ne nari man ka etna sahi chitran kaise kiya hai?
टिप्पणी पोस्ट करें
आपकी टिप्पणियां हमारी अमूल्य धरोहर है। कृपया अपनी टिप्पणियां देकर हमें कृतार्थ करें ।