
गुलज़ार की त्रिवेणिया
गुलज़ार साहब को कौन नही जानता। उनका अपना ही एक अंदाज़ है। देखिये-
सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की
मुस्कराए भी, पुरानी किसी पहचान की खातिर
कल का अखबार था, बस देख भी लिया, रख भी दिया।
कुछ ऐसी ही त्रिवेणियों का संकलन है ये पुस्तक।
फाइल का आकार : 175 kb
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2 टिप्पणियां:
Link not working.
yaar kuch bhi download nahin ho raha hai...
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